Sunday 22nd April 2018 at 5:45 PM on Life, Jobs and Family Updated:23rd November 2024
आज भी दुश्वार है पैसे के बिना ज़िंदगी....!
सात समुंदर पार से गुड़ियों के बाज़ार से
सात समुंदर पार से गुड़ियों के बाज़ार से
अच्छी सी गुड़िया लाना, गुड़िया चाहे ना लाना
पप्पा, जल्दी आ जाना, पप्पा, जल्दी आ जाना
यहाँ गीत का मुखड़ा फिर से रिपीट होता है....जिससे गीत का भावनात्मक बंधन और मज़बूत हो जाता है...!
सात समुंदर पार से गुड़ियों के बाज़ार से
अच्छी सी गुड़िया लाना, गुड़िया चाहे ना लाना
पप्पा, जल्दी आ जाना, पप्पा, जल्दी आ जाना
गीत के दुसरे अन्तरे तक आते आते गीत की धुन बदलती है..इसे आप संगीतकार का कमाल हैं। इस तबदीली से गीत और इसके संगीत का जादू और बढ़ जाता है।
नई सुर और नई धुन में गीत की नई पंक्ति के बोल सामने आते हैं:
तुम परदेस गए जब से, बस ये हाल हुआ तब से
दिल दीवाना लगता है, घर वीराना लगता है
झिलमिल चांद सितारों ने, दरवाज़ों दीवारों ने
सबने पूछा है हम से कब जी छूटेगा ग़म से
इसके बाद ही अन्तरे की अगली पंक्ति में पुरानी धुन लौट आती है:
कब जी छूटेगा ग़म से, कब होगा उनका आना
पप्पा, जल्दी आ जाना, पप्पा, जल्दी आ जाना
यह गीत वास्तव में उन सभी परिवारों के आर्थिक संकट को भी सामने लाता है और भावनात्मक संकट को भी। आर्थिक मजबूरियां घर परिवार में पैदा होने वाले बिछोह के गम को भी बढ़ा देती हैं। फिर याद आती हैं एक और गीत की पंक्तियां--तेरो दो टकियां दी नौकरी मेरा लाखों जाए--हाए हाए यह मजबूरी--यह मौसम और यह दूरी......!
इस गीत में भी यही रेंग महसूस होता है इसके बाद वाले अन्तरे मैं।
माँ भी लोरी नहीं गाती, हमको नींद नहीं आती
खेल खिलौने टूट गए, संगी साथी छूट गए
जेब हमारी खाली है और बसी दीवाली है
हम सबको ना तड़पाओ, अपने घर वापस आओ
अपने घर वापस आओ और कभी फिर ना जाना
पप्पा, जल्दी आ जाना, पप्पा, जल्दी आ जाना
गम, दर्द, उदासी और मजबूरियों का अनुमान लगाएं ज़रा इन शब्दों में:
ख़त ना समझो तार है ये, कागज़ नहीं है प्यार है ये
दूरी और इतनी दूरी, ऐसी भी क्या मजबूरी?
तुम कोई नादान नहीं, तुम इससे अनजान नहीं
इस जीवन के सपने हो, एक तुम ही तो अपने हो
एक तुम ही तो अपने हो, सारा जग है बेगाना
पप्पा, जल्दी आ जाना, पप्पा, जल्दी आ जाना
सात समुंदर पार से गुड़ियों के बाज़ार से
अच्छी सी गुड़िया लाना, गुड़िया चाहे ना लाना
पप्पा, जल्दी आ जाना, पप्पा, जल्दी आ जाना
पप्पा, जल्दी आ जाना.....
इन सभी मजबूरियों को सामने लाना ही है हमारा मकसद। आपके पास भी कोई सच्ची कहानी है तो ज़रूर भेजें।