सात समंदर पार से
रविवार, 24 नवंबर 2024
शनिवार, 15 जून 2024
सात समुद्र क्या हैं?
सात समुंद्र एजियन, एड्रियाटिक, भूमध्यसागरीय, काला, लाल और कैस्पियन समुद्र थे?
फारस की खाड़ी को "समुद्र" के रूप में शामिल किया गया था
इंटरनेट की दुनिया: 15 जून 2024: (नोआ//इनपुट-मीडिया लिंक//सात समंदर पार से डेस्क)
प्राचीन कहानियां सात समंदरों के अजीबो गरीब रहस्यों से भरी पड़ी हैं। हमारे आसपास के घरों परिवारों में ऐसी मजबूरियां भी गई हैं जब घर के अपने अपने घरों की आर्थिक दशा सुधारने के लिए समुंद्र पार नौकरी करने जाया करते थे। बहुत से लोग अपने कारोबार के सिलसिले में भी समुंद्र पार जाया करते थे। समुंद्र पार की चर्चा चलते ही मन में महासागर के बहुत से दृश्य सामने आने लगते। समुंद्र के देवता, समुंदर के राक्षस, समुन्द्र की परियां, समुंद्र की अप्सराएं और समुंद्र की दुनिया के बहुत से अन्य रहस्य।
इनको सोचते हुए मज़ेदार अनुभवों की कल्पना भी रहती और भयावह खतरों और अनहोनियों का डर भी। इन सब की हकीकत क्या है इसे जानने को मानव हमेशां उत्सुक रहा है। The National Ocean Service ने इस दिशा में बहुत महत्वपुर्ण काम किया है। National Oceanic and Atmospheric Administration अर्थात NOAA जो कि अमेरिका में विशेष सागर खोज सेवा है उस ने जो तथ्य इस संबंध खोज निकाले हैं वे हैरानकुन हैं। बहुत से नए सत्य सामने आए हैं। इस बार हम NOAA के एक विशेष अंग्रेज़ी आलेख को हिंदी में यहां भी प्रस्तुत कर रहे हैं।
आपको यह प्रयास कैसा लगा अवश्य बताएं। --संपादक
सात समुद्रों में आर्कटिक, उत्तरी अटलांटिक, दक्षिण अटलांटिक, उत्तरी प्रशांत, दक्षिण प्रशांत, भारतीय और दक्षिणी महासागर शामिल हैं।
वास्तव में 'सात समुद्र' वाक्यांश की सटीक उत्पत्ति अनिश्चित है, हालाँकि इस तरह के नाम और चलन प्राचीन साहित्य में हज़ारों साल पहले के संदर्भ में भी रहे हैं।
'सात समुद्र' वाक्यांश की उत्पत्ति का पता प्राचीन काल से लगाया जा सकता है।
इतिहास में अलग-अलग समय पर विभिन्न संस्कृतियों में, सात समुद्रों ने व्यापार मार्गों, क्षेत्रीय जल निकायों या विदेशी और दूर के जल निकायों के साथ जल निकायों को संदर्भित किया है।
ग्रीक साहित्य में (जहाँ से यह वाक्यांश पश्चिमी साहित्य में आया), सात समुद्र एजियन, एड्रियाटिक, भूमध्यसागरीय, काला, लाल और कैस्पियन समुद्र थे, जिसमें फारस की खाड़ी को "समुद्र" के रूप में शामिल किया गया था।
मध्यकालीन यूरोपीय साहित्य में, वाक्यांश उत्तरी सागर, बाल्टिक, अटलांटिक, भूमध्यसागरीय, काला, लाल और अरब सागर को संदर्भित करता था।
जैसे-जैसे अटलांटिक के पार व्यापार बढ़ता गया, सात समुद्रों की अवधारणा फिर से बदल गई। नाविकों ने तब सात समुद्रों को आर्कटिक, अटलांटिक, हिंद, प्रशांत, भूमध्यसागरीय, कैरिबियन और मैक्सिको की खाड़ी के रूप में संदर्भित किया।
आज बहुत से लोग इस वाक्यांश का उपयोग नहीं करते हैं, लेकिन आप कह सकते हैं कि आधुनिक सात समुद्रों में आर्कटिक, उत्तरी अटलांटिक, दक्षिण अटलांटिक, उत्तरी प्रशांत, दक्षिण प्रशांत, हिंद और दक्षिणी महासागर शामिल हैं।
हालाँकि, हमारा महासागर आमतौर पर भौगोलिक रूप से अटलांटिक, प्रशांत, हिंद, आर्कटिक और दक्षिणी (अंटार्कटिक) में विभाजित है।
सोमवार, 23 अप्रैल 2018
एक यादगारी गीत--गुड़िया चाहे ना लाना पप्पा, जल्दी आ जाना.....!
Sunday 22nd April 2018 at 5:45 PM on Life, Jobs and Family Updated:23rd November 2024
आज भी दुश्वार है पैसे के बिना ज़िंदगी....!
सात समुंदर पार से गुड़ियों के बाज़ार से
सात समुंदर पार से गुड़ियों के बाज़ार से
अच्छी सी गुड़िया लाना, गुड़िया चाहे ना लाना
पप्पा, जल्दी आ जाना, पप्पा, जल्दी आ जाना
यहाँ गीत का मुखड़ा फिर से रिपीट होता है....जिससे गीत का भावनात्मक बंधन और मज़बूत हो जाता है...!
सात समुंदर पार से गुड़ियों के बाज़ार से
अच्छी सी गुड़िया लाना, गुड़िया चाहे ना लाना
पप्पा, जल्दी आ जाना, पप्पा, जल्दी आ जाना
गीत के दुसरे अन्तरे तक आते आते गीत की धुन बदलती है..इसे आप संगीतकार का कमाल हैं। इस तबदीली से गीत और इसके संगीत का जादू और बढ़ जाता है।
नई सुर और नई धुन में गीत की नई पंक्ति के बोल सामने आते हैं:
तुम परदेस गए जब से, बस ये हाल हुआ तब से
दिल दीवाना लगता है, घर वीराना लगता है
झिलमिल चांद सितारों ने, दरवाज़ों दीवारों ने
सबने पूछा है हम से कब जी छूटेगा ग़म से
इसके बाद ही अन्तरे की अगली पंक्ति में पुरानी धुन लौट आती है:
कब जी छूटेगा ग़म से, कब होगा उनका आना
पप्पा, जल्दी आ जाना, पप्पा, जल्दी आ जाना
यह गीत वास्तव में उन सभी परिवारों के आर्थिक संकट को भी सामने लाता है और भावनात्मक संकट को भी। आर्थिक मजबूरियां घर परिवार में पैदा होने वाले बिछोह के गम को भी बढ़ा देती हैं। फिर याद आती हैं एक और गीत की पंक्तियां--तेरो दो टकियां दी नौकरी मेरा लाखों जाए--हाए हाए यह मजबूरी--यह मौसम और यह दूरी......!
इस गीत में भी यही रेंग महसूस होता है इसके बाद वाले अन्तरे मैं।
माँ भी लोरी नहीं गाती, हमको नींद नहीं आती
खेल खिलौने टूट गए, संगी साथी छूट गए
जेब हमारी खाली है और बसी दीवाली है
हम सबको ना तड़पाओ, अपने घर वापस आओ
अपने घर वापस आओ और कभी फिर ना जाना
पप्पा, जल्दी आ जाना, पप्पा, जल्दी आ जाना
गम, दर्द, उदासी और मजबूरियों का अनुमान लगाएं ज़रा इन शब्दों में:
ख़त ना समझो तार है ये, कागज़ नहीं है प्यार है ये
दूरी और इतनी दूरी, ऐसी भी क्या मजबूरी?
तुम कोई नादान नहीं, तुम इससे अनजान नहीं
इस जीवन के सपने हो, एक तुम ही तो अपने हो
एक तुम ही तो अपने हो, सारा जग है बेगाना
पप्पा, जल्दी आ जाना, पप्पा, जल्दी आ जाना
सात समुंदर पार से गुड़ियों के बाज़ार से
अच्छी सी गुड़िया लाना, गुड़िया चाहे ना लाना
पप्पा, जल्दी आ जाना, पप्पा, जल्दी आ जाना
पप्पा, जल्दी आ जाना.....
इन सभी मजबूरियों को सामने लाना ही है हमारा मकसद। आपके पास भी कोई सच्ची कहानी है तो ज़रूर भेजें।